तारा चक्र
जन्म | सम्पत | विपत | क्षेम | प्रत्यरि | साधक | वध | मित्र | अति-मित्र | |
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नक्षत्र | अनुराधा | ज्येष्ठा | मूल | पूर्वाषाढा | उत्तराषाढा | श्रवण | धनिष्ठा | शतभिषा | पूर्वाभाद्रपद |
जन्म | चन्द्र | शनि | |||||||
गोचर | चन्द्र | शनि | |||||||
नक्षत्र | उत्तराभाद्रपद | रेवती | अश्विनी | भरणी | कृत्तिका | रोहिणी | मॄगशिरा | आद्रा | पुनर्वसु |
जन्म | राहु | बृहस्पति | मंगल | ||||||
गोचर | राहु | बृहस्पति | मंगल | ||||||
नक्षत्र | पुष्य | अश्लेशा | मघा | पूर्वाफाल्गुनी | उत्तराफाल्गुनी | हस्त | चित्रा | स्वाति | विशाखा |
जन्म | बुध | सूर्य | शुक्र, केतु | ||||||
गोचर | बुध | सूर्य | शुक्र, केतु |
जन्म तारा कुछ कार्यो के लिए शुभ तथा कुछ कार्यो के अशुभ और प्रथम चक्र में विपत, प्रत्यरि, वध तारा सभी कामो के लिए अशुभ होते है। द्वितीय चक्र के लिए विपत तारा में शुरू का तीसरा भाग, प्रत्यरि तारा में आखिर का तीसरा भाग एवं वध तारा में बीच का तीसरा भाग त्यागना चाहिए। तीसरे चक्र में विपत, प्रत्यरि, वध तारा शुभ होते है।